“जूनून है, कौशल है, तो, सफलता आएगी”

छत्तीसगढ़ राज्य में व्यावसायीक शिक्षा एक महत्वपूर्ण प्रयास है जो शिक्षार्थियों को बिशेस उद्योगों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लीए व्यावहारिक कौशल और ज्ञान प्रदान करके भबिष्य की कार्यबल जनसंख्या को आकार देने में मदद करती है। यह शिक्षा आपूर्ति और रोजगार क्षमता के मध्य में एक सम्बन्ध स्थापित करने में मदद करती है और बिभिन्न उद्योगों के लीए तैयार करती है।

व्यावसायीक शिक्षा युवाओं को अपने व्यापार और उद्यमी बीचारों को बिकसित करने के लीए प्रोत्साहीत करती है। इसके माध्यम से छात्रों को नए और नवाचारी व्यावसायीक मागों का पता चलता है और उन्हें व्यापारिक प्रवृत्त के साथ अपनी कौशल और नौकरी का निर्माण करने का अवसर मिलता है। शिक्षा और रोजगार योग्यता के बीच की गहराई को मिटाने की आवश्यकता को महसूस करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने व्यावसायीक शिक्षा के प्रशासनिक उन्नयन पर बल दिया है।

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लगन व महेनत का फल

लगन और मेहनत से यदी कोई व्यक्ति कार्य प्रारंभ करता है तो वह व्यक्ति जीवन के हर राह में सफल होता है। सफल होने का अर्थ सिर्फ अपार धन का संग्रह ही नहीं होता बल्कि मानसिक सुख एवं आत्मसंतुयष्टि सफल होने के अर्थ को ज्यादा ब्यक्त करती है। रंजीत गंधर्व ऐसा ही लगनशील एवं मेहनती छात्र है जो सहर से दूर एक ग्रामीण क्षेत्र से अपनी 12वीं कक्षा की पढ़ाई अच्छे अंको से पूर्ण की किन्तु गरीब परीवार से होने और धन के अभाव में आगे की उच्च सीक्षा पूरी नहीं कर पाया और BFSI के द्वारा बंधन बैंक में रिलेशनशिप ऑफीसर के पद पर पदस्थ हुआ। बैंक में रहते हुए बहुत सारे कार्य सीखें जैसे- खाता खोलना, पैसा ट्रांसफर करना, एटीएम से पैसा निकलना इत्यादी किन्तु बैंक में काम करते-करते बिभिन्न व्याख्यान एवं संगोष्ठी को सुनने एवं उसे अपने जीवन में आत्मसात करने पर ज्ञात हुआ की वौतिक जीवन की चमक-धमक से मानसिक सुख और आत्मसंतुष्टि ज्यादा आवश्यक है इसयिए उसने बैंक से त्यागपत्र दे दीया और अपने उच्च यिक्षा के लीए अग्रसर हुआ तथा अपनी पूरी लगन और मेहनत से स्नातकोत्तर की पढ़ाई जारी रखी। रंजीत का लक्ष्य ऊपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण करना है अतः वह दृढ़निश्चित होकर अपनी तैयारी कर रहा है और अंततः वह अपने लगन और मेहनत के बल पर अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर जीवन में सफल होने को सार्थक करेगा। उम्मीद के आसरे में रहना पसंद नहीं मुझे मैं अपनी मेहनत से अपना आसीयाना बनाऊंगा …. यही मेरे प्यारे छात्र रंजीत की लगन और विस्वास की कहानिया …..तस्वीर बदलने के लिए सजना संवारना पड़ता है तक़दीर बदलती है तो सिर्फ महेनत ज़रूरी है रंजीत की कुछ बैंकिंग की खास फोटो भी मेंने शेयर की जब उनके द्वारा बैंक में जाकर प्रसिशन लीया गया ।

फर्श से अर्श का सफ़र

ये कहानी है ललिता सीदार की जो महासमुन्द जिला के अंतिम छोर मे बसे बनाचल ग्राम बड़ेसाजापाली की है ललिता मध्यम परीवार से तालुक रखती है। ललिता ने 9वी से 12वी तक कीपढाई व्यवसायिक बीषय बैंकीग के साथ पूर्ण कीया। वह समय जब व्यवसायिक कोर्स की सुरूवात हुई थी। ललिता ने बैंकिंग कोर्स को पढ़ा नही, बल्कि सीखा या यु कहे उसे जीया। ललिता बताती है की यही समय था जब उनका ब्यक्तित्य का बीकास हुआ।

आज ललिता नेहरू युवा केंद्र खेल एवं युवा कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के उपक्रम मे बतौर एन.एस.वी. के तौर पर कार्य करते हुये सामाजीक कार्य कर रही है। ललिता का सफर यही नही रूकने बाला था महिलाओं को ससक्त बनाने के लीये कराटे का प्रसिक्षण देने का कार्य करती है साथ ही स्वयं राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई मैडल जीत चुकी है। ललिता का मानना है इन सभी उपलब्धि को प्राप्त करने में व्यावसायीक शिक्षा सहायक हुये। खुदकी आत्मबीश्वास बढ़ाने में मदद की। इसे प्राप्त बिभिन्न स्किल्स को सबसे महत्वपूर्ण मानती है तथा सभी विद्यार्थियों के पास व्यावसायीक शिक्षा का होना अनिर्बाय मानती है।

आपदा मैं अवसर

बहुत बड़ा अंतर होत़ा है सपने और हकीकत में और सपनोंको पूऱा करने के दरमिय़ान जीवन में बहुत स़ारे उत़ार-चढ़ाव क़ा स़ामऩा करऩा पडत़ा है। ऐसी सासकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय मंदीर हसौद की हम़ारी एक होनह़ार छात्रा तृष्ण़ा विस्वास जिन्होंने कम उम्र में अपने पित़ाजी को खो दीय़ा जीस समय उन्हें एक पित़ा की सबसे ज्य़ाद़ा जरूरत थी। परीव़ार में कुल 4 सदस्य थे जीनमें सीर्फ पित़ाजी ही एकम़ात्र आय के स्रोत थे।

उनके नहीं रहने पर घर की सारी जीम्मेदारीयां माताजी के ऊपर आ गई जीसे निभाना आसान नहीं था, किन्तु माँ ने इस बीषम परिस्थिति का सामना करते हुए सिलाई-कढ़ाई का कार्य करते हुए घर के खचों के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई के खचों को भी वहन कीया। उनको सीक्षा का महत्व पता था इसलीए बच्चों के पढ़ाई को रुकने नहीं दीया। तृष्ण़ा जो की व्यावसायीक बिसय पढ़ाई कर रही थी जो उनके व परीवार के यिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबीत हुआ। कक्षा नौवीं से बारहवीं तक उन्होंने जो भी व्यावसायीक कौशल सीखा था उनके बल पर उन्हें रायपुर की एक प्रतिष्ठित कंपनी में ऑफिस असीस्टेंट की जॉब आसानी से मिल गई जहां तृष्ण़ा 8000/- रुपये प्रतिमाह वेतन प्राप्त करती है, जो परीवार की आर्थिक बोझ को कम करने में सहायक सीद्ध हुई। तृष्ण़ा और आगे बढ़ना चाहती है जीसके लीए वह प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में अपनी पढ़ाई को नीरंतर जारी रखी है। इस प्रकार वह अन्य विद्यार्थीयों के लीए एक उदाहरण है की यदि आप कीसी चीज को पूरे मन से प्राप्त करना चाहो तो आपको वह एक दीन जरूर मिल कर रहता है। इसलीए कहते है की जहां चाह है, वहां राह है।

कहते है मेहनत का कोई बिकल्प नहीं होता

दीहाड़ी मजदुर सब्द सभी ने सुना होगा। यह अगर परीवार के कीसी सदस्य के बारे मे हो तो थोडा मन के भाव को बदल देता है, क्योकी इसमें कभी काम मिलता है कभी नहीं तथा काम नहीं मिलने पर घर की दैनिक जरुरतो को पूरा करने में मुस्किलो का सामना करना पड़ता है। वैसे कोई काम छोटा या बडा नही होता, कीन्तु कोई इंसान अपनी संतान को अपनी तरह दीहाड़ी मजदूर करते नहीं देखना चाहता। वे अपने बच्चो को अपने से बेहतर स्थिति में देखने का सपना संजोये रहते है,इसलीये वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का हर संभव प्रयत्न करता है।

प्रत्येक छात्र में कुछ ना कुछ हुनर होता है,बस जरूरत होती है उसे पहचानने की चाहे खुद के द्वारा या कीसी और के द्वारा। एक व्यावसायिक प्रसीक्षक छात्र के अन्दर छुपी हुई प्रतिभा को सामने लाने तथा उन्हें निखारने का प्रयास करता है। यह कार्य तब सफल होता है जब छात्र सीखे हुवे व्यावसायिक कौशल का उपयोग कर सफलता प्राप्त करता है। सासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सोरम से कक्षा बारहवी पास होने के बाद अजय आगे की पढाई तो कर ही रहा है, साथ में रोजगार की भी तलाश कर रहा था। वह फोन करता था और कही जॉब दिलवा दीजीये सर करके नीवेदन भी करता था। कीन्तु कीसी भी कार्य का अनुभव नही होने के कारन उन्हें जॉब दिलाना थोड़ा मुश्किल था, पर वह अपने प्रयास मे लगा रहा, और उसे एक रिटेल शॉप में, अनुभव नहीं होते हुवे भी उनके स्किल्स के आधारपर जॉब में रख लीया। इस प्रकार धीरे-धीरे उन्हें कई जगह कार्य का अनुभब मिलता गया और आज अजय अपने उन्ही अनभुवों और कौशल के दम पर सहर के एक बड़े राइसमिल मैं असीस्टेंट अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत है। इस प्रकार अजय की जुझारूपन व स्किल्स ने जॉब दिलाया और आज अजय राइस मिल का खाताबही संभल रहा है। अब अजय फिर से मुझे फोन करता और कहता है सर मुझे CA (Chartered Accountant)का कोर्स करना है, क्योकी मुझे इससे भी बड़ी कंपनीयों का एकाउंटिंग करना है। इस कोर्स के लिए बिभिन्न माध्यमों से जानकारी इकठ्ठा कर रहा है जैसे CA के लीये प्रबेश परीक्षा (CPT), फीस, कोर्स अवधि, इंटर्नशिप आदी।

जीवन मैं कुछ करना है तो हीम्मत और लगन के साथ आगे बढ़ना सीखो

इसी लाइन को सार्थक करते हुए साकरा ग्राम के एक छात्र ने यह कर दीखिाया की यदी मन मैं चाहो तो राह मिल ही जाती है। मन में कुछ कर गुजरने की तीव्र इच्छा पहले से थी और व्यावसायिक शिक्षा का साथ मिलने के कारन उसकी इच्छा और प्रबल हो गई। पिता नहीं होने के कारन माता जी को हमेशा संघर्ष करते हुए देखा और उनके लीए कुछ कर गुजरने की उसकी ललक बनी रहती थी। इसी दौरान उसका बड़ा भाई जो कॉलेज कर चुका था उसकी सहायता लेकर दोनों भाई ने गांव में अपना एक चॉइस सेंटर खोला और ललित को व्यावसायीक शिक्षा के अंतर्गत बैंकिंग बिसय लेकर पड़ा। उसे बैंकिंग के अच्छी जानकारी थी जीससे वह क्यों अपने भाई के साथ साझा कीया और आज वह ग्राम में 12वीं पढ़ने के बाद चॉइस सेंटर संचालीत कर रहा है।

जहा ऑनलाइन से सम्बंधित सभी कार्य फॉर्म भरना, रोजगार गारंटी मैं पंजीयन करना, जॉब कार्ड बनाना, पैन कार्ड बनाना आदि ऐबों बैंकिंग सम्बन्धी कार्यों को बखूबी सम्पादीत रहा है और साथ ही अपने सपनो को साकार करने की ओरै कदम बढ़ा रहा है। उस छात्र का नाम है ललित साहू, पिता प्रमोद कुमार साहू, माता होमरिका, ग्राम साकरा, तहसील नगरी जिला धमतरी। जो की आज व्यावसायीक शिक्षा के कारन स्वयं का चॉइस सेंटर में काम कर अपने सपनो की उड़ान भर रहा है।

कहते है नारी पढ़ेगी तो बिकास गढेगी……..

इस कथन को सत्य करते हुए संकरा ग्राम की रौशनी यादव अपने घर में 6 भाइयों बहनों में छोटी बहन है। जीनके पिताजी हाली ही में तबीयत खराब होने के कारन स्वर्गबास हो गये। और भाई ने घर का कार्यभार संभाला, और उससे जो भी बन पड़ा हुए अपने कार्यों को कर रहा है, साथ ही मां भी रोज मजदूरी और सिलाई कढ़ाई आदी कर, घर का भरण पोषण करते हैं। रोशनी इस बात से भलीभांति परिचित थी की शिक्षा से ही वह अपनी स्थिति को मजबूत कर सकती है। जब वह वोकेशनल कोर्स लेकर बैंकिंग की पढ़ाई कर रही थी, तब उसने एक बिसेस रूचि दीखाई। उसने ऐक तरह का मॉडल बनाकर क्लास में दिए गए हर कार्य को जरूर करके आती और हमेशा नई चीजें सीखने के लिए खुस रहती।

जब उसने 12वीं की पढ़ाई कम्पलीट की तो उसने पंजाब नेशनल के सहायक बैंक मित्र चॉइस सेंटर खोलने का बीचार किया, और यह बात अपने घरबालों से भी जाहीर की। वौ गांव में ही रहकर अपने परीवार के साथ हो यह कार्य आसानी से कर सकती थी और बैंकिंग से लेकर पढ़ने से इसमें उसका ज्ञान और रूचि दोनों शामिल थे। गांव में एक भी चॉइस सेंटर नहीं होने के कारन 8 कलोमीटर दूर जाना पड़ता था। रौशनी द्वारा सहायक बैंक मित्र चॉइस सेंटर खोले जानने के बाद गांव के युवा बर्ग ऑनलाइन कार्य करने, बैंकिंग कार्य करने आदी के लीए बैंक मित्र का सहारा लेकर अपने बित्तीय कार्य को करने में सक्षम हो रहे हैं। रोशनी गावं के लीए एक मिशाल के रूप मे प्रेरणा बनी हुई है।

मेहनत एक दीन रंग जरुर लाती है……

आज हम एक ऐसे बिद्यार्थी के बारे में चर्चा करेंगे, जीन्होंने हमेशा पढाई को सबसे अधिक महत्व दीया। वह स्कूल की प्रत्येक गतिबिधि मे स्वस्फूर्त भाग लेती तथा हमेशा अन्य बिद्यार्थियों से अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिस में लगी रहती। जो उन्हें बीभन्न व्यावसायिक कौशल सीखने में सहायक सीद्ध हुई, और उनकी लगन और मेहनत ने रंग लाया तथा वह आज धमतरी सहर के एक ख्याति प्राप्त ओरिएटं पब्लिक स्कूल मैं एक टीचर के रुप मैं कार्यरत है। व्यावसायीक शिक्षा के दौरान उन्हें बिभिन्न कौशल सीखने का अवसर मिला, जीन्हें वह एक टीचर के रूप में कार्य करते हुवे उन कौशल को और निखार रही है, जो उन्हें और आगे बढ़ने में निश्चित ही सहायक सीद्ध होगी।

इस प्रकार वह जॉब करते हुवे अपने परीवार में आर्थिक योगदान दे रही है तथा अपने भबीष्य केि लक्ष्यों को पूरा करने के राह में धीरे –धीरे आगे बढ़ रही है. यह बात तो सच है की एक परीश्रमी ब्यक्ति पहले स्वयम को, फिर परीवार तथा समाज को आगे बढाता है। इसे ही सायद हुनर से सीखर तक पहुचाँना कहते है। यह कहानी है सासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सोरम की प्रतिभाबन छात्रा कुमारी कामिनी निषाद की जीनकी लगन व मेहनत ने उन्हें एक टीचर बनने मैं मददगार सीद्ध हुई।

बंद ऑंखो से सपने देखो, और खुली ऑंखो से उसे पूरा करने की जिद करो।

कहते है समय बदलते देर नहीं लगती। बुरे दौर का हीम्मत से मुकाबला करें तो मुसीबतें खुद ही दूर चली जाती हैं। पिता सब्जी मार्किट मे सब्जी बेचा करते हैं। कमाई इतनी ही थी की कीसी तरह अपना और परीवार का पेट भर सकें लेकिन कॉलेज में छात्रों को पढ़ते देख वे अपने बेटे के लीए सपने देखा करते थे। जब वह नौवीं कक्षा में था तब भी वह रात को देर तक जगकर पढ़ाई करता रहता। उसकी यह धुन देखकर पिता मन ही मन खुस होते थे लेकिन चिंता भी थी की वे बेटे की पढ़ाई की सारी जरूरतें पूरी कर पाएंगे या नहीं। वह जब नौवीं कक्षा में था तो व्यावसायिक बीषय से परीचय हुवा। जीसमे उन्हें प्रासिकस्क के द्वारा कोर्स के फायदे व करियर बिकल्प के बारे में बीस्तार से बताया गया। फिर क्या था, उसने इस कोर्स को एक अवसर के रूप में स्वीकार कीया और व्यावसायिक बीषय को पुरे लगन से पढ़ने की ठान ली। बारहवीं पास करने के बाद कैंपस प्लेसमेंट मैं उसको रिलायंस स्टोर मैं एग्जीक्यूटिव के पद के लीए जॉब मिल गई। लेकिन वह फैसला नहीं कर पा रहा है की पररवार की माली हालत सुधारने के लीए उसे नौकरी ज्वॉइन कर लेनी चाहीए, या मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी कर बेहतर भबीष्य के लिए कोसिस करनी चाहीए। फिर उसने अपने पिता के सपने के साथ कॉलेज की पढ़ाई आगे जारी रखने का नीर्णय लीया। लेकिन कही ना कही उसके मन में व्यावसाय करने की रूची भी थी। कक्षा बारहवीं तक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कीया था, उसका उपयोग कर उसी दिशा में व्यावसाय करने की ठानी। उसने गोहरापदर जिला गरीयाबदं मैं एक छोटा सा कीराना दुकान के साथ-साथ बैंकिंग कोर्स सेंटर से व्यावसाय की सुरुवात की और आगे की पढ़ाई भी प्राइवटे छात्र के रूप मैं जारी रखा हुवा है। बर्तमान में वह अपने कीराने के दूकान से प्रतिमाह आठ से दस हजार रूपये कमा लेता है। इससे वह अपने परीवार के आर्थिक बोझ को कम करने व अपने आगे की पढाई के लीए उपयोग कर रहा है। इस जीम्मेदार छात्र का नाम है प्रवीर् जो सासकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय गोहरापदर जिला गरीयाबदं छत्तीसगढ़ का होनहार छात्र था।